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मानसरोवर--मुंशी प्रेमचंद जी


शांति-1 मुंशी प्रेम चंद

सुन्‍नी मुंह फेरकर हंसती हुई चली गई। मां की दुलारी लडकी थी। जिस दिन वह गहस्‍थी का काम करती, उस दिन शायद गोपा रो रोकर आंखें फोड लेती। वह खुद लड़की को कोई काम न करने देती थी, मगर सबसे शिकायत करती थी कि वह कोई काम नहीं करती। यह शिकायत भी उसके प्‍यार का ही एक करिश्‍मा था। हमारी मर्यादा हमारे बाद भी जीवित रहती है।
मैं तो भोजन करके लेटा, तो गोपा ने फिर सुन्‍नी के विवाह की तैयारियों की चर्चा छेड दी। इसके सिवा उसके पास और बात ही क्‍या थी। लडके तो बहुत मिलते ‍हैं, लेकिन कुछ हैसियत भी तो हो। लडकी को यह सोचने का अवसर क्‍यों मिले कि दादा होते हुए तो शायद मेरे लिए इससे अच्‍छा घर वर ढूंढते। फिर गोपा ने डरते डरते लाला मदारीलाल के लड़के का जिक्र किया।
मैंने चकित होकर उसकी तरफ देखा। मदारीलाल पहले इंजीनियर थे, अब पेंशन पाते थे। लाखों रूपया जमा कर लिए थे, पर अब तक उनके लोभ की भूख न बुझी थी। गोपा ने घर भी वह छांटा, जहां उसकी रसाई कठिन थी। मैंने आपति की—मदारीलाल तो बड़ा दुर्जन मनुष्‍य है।
गोपा ने दांतों तले जीभ दबाकर कहा—अरे नहीं भैया, तुमने उन्‍हें पहचाना न होगा। मेरे उपर बड़े दयालु हैं। कभी-कभी आकर कुशल— समाचार पूछ जाते हैं। लड़का ऐसा होनहार है कि मैं तुमसे क्‍या कहूं। फिर उनके यहां कमी किस बात की है? यह ठीक है कि पहले वह खूब रिश्‍वत लेते थे; लेकिन यहां धर्मात्‍मा कौन है? कौन अवसर पाकर छोड़ देता है? मदारीलाल ने तो यहां तक कह दिया कि वह मुझसे दहेज नहीं चाहते, केवल कन्‍या चाहते हैं। सुन्‍नी उनके मन में बैठ गई है।
मुझे गोपा की सरलता पर दया आयी; लेकिन मैंने सोचा क्‍यों इसके मन में किसी के प्रति अविश्‍वास उत्‍पन्‍न करूं। संभव है मदारीलाल वह न रहे हों, चित का भावनाएं बदलती भी रहती हैं।
मैंने अर्ध सहमत होकर कहा—मगर यह तो सोचो, उनमें और तुममे कितना अंतर है। शायद अपना सर्वस्‍व अर्पण करके भी उनका मुंह नीचा न कर सको।
लेकिन गोपा के मन में बात जम गई थी। सुन्‍नी को वह ऐसे घर में चाहती थी, जहां वह रानी बरकर रहे।
दूसरे दिन प्रात: काल मैं मदारीलाल के पास गया और उनसे मेरी जो बातचीत हुई, उसने मुझे मुग्‍ध कर दिया। किसी समय वह लोभी रहे होंगे, इस समय तो मैंने उन्‍हें बहुत ही सहृदय उदार और विनयशील पाया। बोले भाई साहब, मैं देवनाथ जी से परिचित हूं। आदमियों में रत्‍न थे। उनकी लड़की मेरे घर आये, यह मेरा सौभाग्‍य है। आप उनकी मां से कह दें, मदारीलाल उनसे किसी चीज की इच्‍छा नहीं रखता। ईश्‍वर का दिया हुआ मेरे घर में सब कुछ है, मैं उन्‍हें जेरबार नहीं करना चाहता।

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